Green investments outpaced India’s GDP growth from 2016-2018, indicating the potential for green technologies and sectors to drive economic growth
New Delhi, September 11, 2020: A new report by Climate Policy Initiative (CPI) launched today shows that “green sectors” such as renewable energy, energy efficiency, and low-carbon transport, are helping to drive economic growth in India.
The CPI report, supported by Shakti Sustainable Energy Foundation, titled ‘Landscape of Green Finance in India’ (2016-18) is a one of a kind study that presents the most robust information on green finance in India. It was launched on Friday by Dinesh Jagdale, Joint Secretary, Ministry of New and Renewable Energy, Government of India, in the presence of other experts such as Sharmila Chavaly, Principal Financial Adviser, Northern Railway, Government of India, Balawant Joshi, Managing Director, Idam Infrastructure Advisory Private Limited, Satish Mandanha, Senior Managing Director and Chief Investment Officer, EverSource, Shloka Nath, Executive Director, India Climate Collaborative, Dharshan Wignarajah, Deputy Director, Themes, Finance and Resilience, COP26, Cabinet Office, Govind Sankaranarayanan, Vice Chairman, ECube Investment Advisors Private Limitedand Chintan Shah, Director (Technical) in Indian Renewable Energy Development Agency Ltd.
The report highlights that, in total, green finance flows in India for FY 2017 were INR 111 thousand crores (USD 17 billion) and INR 137 thousand crores (USD 21 billion) for FY 2018. The total tracked green finance for the years 2016-18 amounted to INR 248 thousand crores (USD 38 billion). This compares to an estimated USD 170 billion per year required for India to finance its climate actions, putting tracked green investments at an estimated 10% of required investments across sectors.
The report also mentions that green investments outpaced India’s GDP growth during the study period. The GDP of India grew at an average rate of 7.2% between 2016-17 and 2017-18, and the tracked investments suggest an increase of 24%. This indicates that green investments have the potential for driving economic growth of the country.
Ms Mahua Acharya, Asia Director, Climate Policy Initiative, said, “The report shows the significant potential of renewable energy and other green technologies to fuel India’s economy. It is also encouraging to know that Government of India’s support to unlock private investment has helped, but we also see much more needs to be done.”
In both years, 2016-2017 and 2017-2018, domestic private investors contributed the largest share (63% and 51% respectively) of about INR 139 thousand crores through debt and equity, while public finance sources supported this investment through a variety of instruments. The domestic public green finance expenditure by the government and its agencies totalled INR 71 thousand crores (~US$ 9 billion) for the two years. Government of India initiatives including the expenditure undertaken by the dedicated public sector undertakings (PSUs) on climate-related mitigation activities more than doubled from FY 2017 to FY 2018 while the budgetary allocations increased by 36%.
The report further highlights that the share of international public finance in tracked green finance remained nearly the same in both FY 16 and FY 17 at 10% (INR 12 thousand crores).
Debt, through project or corporate finance, was the largest financial instrument used to channel green finance, at an average of INR 70 thousand crores/year during 2016-17, accounting for 54% of the total tracked green finance.
Ms Acharya added, “This report is ground-breaking in that it is an unprecedented benchmark of economic and financial progress toward a green future. So far, there is little to no comprehensive information available on how much of green finance went through the Indian economy. We very much hope that this study will help bridge this information gap.”
CPI’s green investment tracking looks at the primary transaction level, and as such is the standard for comprehensiveness, used globally by the United Nations, IPCC, G7 countries, and multiple national governments including Indonesia, Brazil, and Southern Africa. This is the first time CPI’s methodology has been applied in India, and as such represents crucial information for policy makers working on India’s next phase of sustainable development.
To view the report and infographics, please click here: https://www.climatepolicyinitiative.org/publication/landscape-of-green-finance
About CPI
With deep expertise in finance and policy, CPI is an analysis and advisory organization that works to improve the most important energy and land use practices around the world. CPI’s mission is to help governments, businesses, and financial institutions drive economic growth while addressing climate change. CPI has six offices around the world in Brazil, Kenya, India, Indonesia, the United Kingdom, and the United States.
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भारत में हरित निवेश प्रवाह का पहला लेखा-जोखा उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता को दर्शाता है
2016-2018 से हरित निवेश ने भारत की जीडीपी विकास दर को बढ़ाने में योगदान दिया है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में हरित प्रौद्योगिकियों और क्षेत्रों की क्षमता को दर्शाता है
नई दिल्ली, 11 सितंबर, 2020: क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव (सीपीआई) की आज जारी एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और कम कार्बन उत्सर्जन वाले परिवहन जैसे “हरित क्षेत्र” भारत में आर्थिक विकास को गति देने में मदद कर रहे हैं।
शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन द्वारा समर्थित सीपीआई की रिपोर्ट, ‘लैंडस्केप ऑफ ग्रीन फाइनेंस इन इंडिया’ (2016-18), एक तरह का अध्ययन है जो भारत में ग्रीन फाइनेंस पर सबसे उन्नत जानकारी प्रस्तुत करता है। इसे श्री दिनेश जगदाले, संयुक्त सचिव, नवीन एवं नवीनीकृत ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी किया गया। इस मौके पर शर्मिला छावले, प्रधान वित्तीय सलाहकार, उत्तर रेलव, भारत सरकार, बलवंत जोशी, प्रबंध निदेशक, आईडैम इन्फ्रास्ट्रक्चर एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड, सतीश मंडनहा, वरिष्ठ प्रबंध निदेशक और मुख्य निवेश अधिकारी, एवरसोर्स, श्लोका नाथ, कार्यकारी निदेशक, इंडिया क्लाइमेट कोलेबोरेटिव, दर्शन विघन्राज, उप निदेशक, थीम्स, फाइनेंस एंड रीसाइलेंस, सीओपी26, कैबिनेट ऑफिस, गोविंद शंकरनारायणन, वाइस चेयरमैन, ईक्यूब इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड तथा चिंतन शाह, निदेशक (टेक्निकल), इंडियन रीन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड जैसे विशेषज्ञ मौजूद थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2017 के लिए कुल मिलाकर भारत में ग्रीन फाइनेंस का प्रवाह 111 हज़ार करोड़ रुपये (17 अरब डॉलर) और वित्त वर्ष 2018 में 137 हज़ार करोड़ रुपये (21 अरब डॉलर) रहा था। वर्ष 2016 से 2018 के दौरान ट्रैक किए गए कुल ग्रीन फाइनेंस की राशि 248 हज़ार करोड़ रुपये (38 अरब डॉलर) रही थी। इसकी तुलना में भारत में अपने क्लाइमेट एक्शन को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष अनुमानित 170 अरब डॉलर की आवश्यकता है, जो सभी क्षेत्रों में अनुमानित 10% आवश्यक हरित निवेश पर आधारित है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अध्ययन अवधि के दौरान हरित निवेश ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास को बढ़ावा दिया है। 2016-17 और 2017-18 के बीच भारत की जीडीपी 7.2% की औसत दर से बढ़ी है और ट्रैक किए गए निवेश में 24% की वृद्धि का पता चलता है। इससे संकेत मिलता है कि हरित क्षेत्रों में निवेश देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में सक्षम है।
महुआ आचार्य, एशिया डायरेक्टर, क्लाइमेट पॉलिसी इनीशिएटिव ने कहा, ‘‘रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अक्षय ऊर्जा और अन्य हरित प्रौद्योगिकियों की महत्वपूर्ण क्षमता को दिखाया गया है। यह जानना भी उत्साहजनक है कि भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र को निजी निवेश के लिए खोलने से भी मदद मिली है, लेकिन हमें और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।”
2016-2017 और 2017-2018 में घरेलू निजी निवेशकों ने ऋण और इक्विटी के माध्यम से सर्वाधिक लगभग 139 हजार करोड़ रुपये के (क्रमशः 63% और 51%) का योगदान दिया, जबकि सार्वजनिक वित्त स्रोतों ने विभिन्न साधनों के माध्यम से इस निवेश का समर्थन किया । इन दो वर्षों के दौरान सरकार और उसकी एजेंसियों का घरेलू सार्वजनिक ग्रीन फाइनेंस व्यय 71 हज़ार करोड़ रुपये (करीब 9 अरब डॉलर) रहा। वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2018 तक जलवायु-संबंधी शमन गतिविधियों पर भारत सरकार की पहल और समर्पित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा दोगुने से भी अधिक व्यय किए, जबकि बजटीय आवंटन में 36% की वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि ट्रैक किए गए ग्रीन फाइनेंस में अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 और वित्त वर्ष 2017, दोनों में लगभग 10% (12 हजार करोड़ रुपये) समान रही।
परियोजना या कॉर्पोरेट वित्त के माध्यम से ऋण ग्रीन फाइनेंस का सबसे बड़ा साधन रहा, जिसके तहत् 2016-17 के दौरान प्रति वर्ष औसतन 70 हज़ार करोड़ रुपये निवेश किया गया, जो कुल ट्रैक किए गए ग्रीन फाइनेंस का 54% था।
महुआ आचार्य ने कहा, ‘‘यह रिपोर्ट इस मायने में मिसाल है कि यह हरित भविष्य की दिशा में आर्थिक और वित्तीय प्रगति का एक अभूतपूर्व बेंचमार्क है। अब तक, भारतीय अर्थव्यवस्था के में ग्रीन फाइनेंस के जरिए कितना योगदान किया गया, इसकी कोई व्यापक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि यह अध्ययन इस जानकारी के अंतर को पाटने में मदद करेगा।”
सीपीआई का ग्रीन इन्वेस्टमेंट ट्रैकिंग प्राथमिक लेनदेन स्तर पर नज़र रखता है, और जैसा कि व्यापकता के लिए मानक है, संयुक्त राष्ट्र, आईपीसीसी, G7 देशों और इंडोनेशिया, ब्राजील तथा दक्षिणी अफ्रीका सहित कई देशों की सरकारों द्वारा वैश्विक स्तर पर इसका उपयोग किया जाता है। यह पहला अवसर है जब सीपीआई की कार्यप्रणाली भारत में लागू की गई है, और यह भारत के स्थायी विकास के अगले चरण में काम करने वाले नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी का प्रतिनिधित्व करता है।
रिपोर्ट और इन्फोग्राफिक्स देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें: https://www.climatepolicyinitiative.org/publication/landscape-of-green-finance
सीपीआई के बारे में
वित्त और नीति में गहरी विशेषज्ञता वाली सीपीआई विश्लेषण और सलाहकार संगठन है जो दुनिया भर में सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा और भूमि उपयोग प्रथाओं को बेहतर बनाने के लिए काम करता है। सीपीआई का उद्देश्य सरकारों, व्यवसायों और वित्तीय संस्थानों को जलवायु परिवर्तन की समस्या को दूर करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करना है। सीपीआई के दुनिया के विभिन्न देशों ब्राजील, केन्या, भारत, इंडोनेशिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में छह कार्यालय हैं।
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भारतातील हरित गुंतवणुकीच्या ओघाच्या पहिल्यावहिल्या आढाव्यात लक्षणीय वाढीची गरज अधोरेखित
२०१६-२०१८ या कालावधीत भारताच्या जीडीपी वृद्धीपेक्षा हरित गुंतवणूक अधिक, आर्थिक वाढीला चालना देण्याची हरित तंत्रज्ञान आणि क्षेत्रांची क्षमता अधोरेखित
नवी दिल्ली, ११ सप्टेंबर २०२० : अपारंपरिक ऊर्जा, ऊर्जेचा सुयोग्य वापर आणि कमी कार्बन ऊत्सर्जित करणारी वाहतूक व्यवस्था यांसारख्या “हरित क्षेत्रांमुळे” भारताच्या आर्थिक प्रगतीला चालना मिळण्यास मदत होत असल्याचे आज प्रकाशित करण्यात आलेल्या क्लायमेट पॉलिसी इनिशिएटिव्हच्या (सीपीआय) नव्या अहवालात नमूद करण्यात आले आहे.
लँडस्केप ऑफ ग्रीन फायनान्स इन इंडिया (२०१६-२०१८) असे या अहवालाचे नाव असून शक्ती सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशनच्या पाठबळावर तयार करण्यात आलेला सीपीआयचा हा अहवाल म्हणजे भारतातील हरित वित्तपुरवठ्यासंदर्भातील सर्वांगीण माहिती पुरवणारा अशा प्रकारचा एकमेव अभ्यास आहे. भारत सरकारच्या नवीन व अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालयाचे सहसचिव श्री. दिनेश जगदाळे यांनी शुक्रवारी या अहवालाचे अनावरण केले. याप्रसंगी भारत सरकारच्या रेल्वे मंत्रालयाच्या उत्तर रेल्वे विभागाचे प्रमुख आर्थिक सल्लागार शर्मिला चावली, इदम इन्फ्रास्ट्रक्चर अॅडव्हायजरी प्रायव्हेट लिमिटेडचे व्यवस्थापकीय संचालक बळवंत जोशी, एव्हरसोर्सचे वरिष्ठ व्यवस्थापकीय संचालक आणि मुख्य गुंतवणूक अधिकारी सतीश मंधाना, इंडिया क्लायमेट कोलॅबरेटिव्हचे कार्यकारी संचालक श्लोका नाथ, सीओपी२६ कॅबिनेट ऑफिसच्या फायनान्स अँड रेझिलियन्सच्या थीम्स विभागाचे उपसंचालक दर्शन विग्नराज, ईक्यूब इन्व्हेस्टमेंट अॅडव्हायजर्स प्रायव्हेट लिमिटेडचे उपाध्यक्ष गोविंद शंकरनारायणन आणि इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेव्हलपमेंट एजन्सी लिमिटेडचे संचालक (तांत्रिक) चिंतन शाह हे उपस्थित होते.
आर्थिक वर्ष २०१७ मध्ये भारतात एकूण हरित अर्थपुरवठ्याचा ओघ १११ हजार कोटी रुपये (१७ अब्ज अमेरिकी डॉलर), तर आर्थिक वर्ष २०१८ मध्ये १३७ हजार कोटी रुपये (२१ अब्ज अमेरिकी डॉलर) इतका होता, असे अहवालात नमूद करण्यात आले आहे. २०१६-१८ या कालावधीसाठी नोंद करण्यात आलेला एकूण हरित अर्थपुरवठा २४८ हजार कोटी रुपये (३८ अब्ज अमेरिकी डॉलर) इतका आहे. भारताला पर्यावरण संवर्धनासंदर्भातील गुंतवणुकीसाठी दर वर्षी १७० अब्ज अमेरिकी डॉलरची आवश्यकता असून नोंद करण्यात आलेली गुंतवणूक एकूण गरजेच्या १० टक्के इतकी आहे.
ज्या कालावधीचा आढावा घेण्यात आला, त्या कालावधीत हरित गुंतवणुकीचा वेग हा भारताच्या जीडीपी वाढीपेक्षा अधिक होता, असेही अहवालात नमूद करण्यात आले आहे. २०१६-१७ आणि २०१७-१८ या आर्थिक वर्षात भारताचा जीडीपी वाढीचा सरासरी दर ७.२ टक्के होता, तर या कालावधीत हरित गुंतवणुकीतील वृद्धी २४ टक्के होती. यावरून भारताच्या आर्थिक वाढीला चालना देण्याची क्षमता हरित गुंतवणुकीत असल्याचे दिसून येते.
क्लायमेट पॉलिसी इनिशिएटीव्हच्या आशिया संचालक श्रीमती महुआ आचार्य म्हणाल्या, “भारताच्या आर्थिक प्रगतीला हातभार लावण्याची प्रचंड क्षमता अपारंपरिक ऊर्जा व अन्य हरित तंत्रज्ञानात असल्याचे या अहवालाने दाखवून दिले आहे. खासगी गुंतवणुकीला वाव मिळावा, यासाठी भारत सरकार देत असलेल्या पाठबळाचा उपयोग होत आहे, ही बाब देखील उत्साहवर्धक आहे, मात्र अजूनही खूप काही करता येण्यासारखे आहे.”
२०१६-१७ आणि २०१७-१८ या दोन्ही वर्षांमध्ये देशांतर्गत खासगी गुंतवणूकदारांचा वाटा कर्ज आणि भांडवल अशा संमिश्र माध्यमातून तब्बल १३९ हजार कोटी (अनुक्रमे ६३ टक्के व ५१ टक्के) इतका होता. तर सार्वजनिक क्षेत्रातील अर्थपुरवठ्याच्या स्त्रोतांनी विविध साधनांच्या माध्यमातून या गुंतवणुकीला पाठबळ दिले. सरकार व त्यांच्या विविध यंत्रणांनी या दोन वर्षांत देशांतर्गत सार्वजनिक हरित अर्थपुरवठ्यावर ७१ हजार कोटी रुपये खर्च केले. भारत सरकारच्या अखत्यारीतील सार्वजनिक कंपन्यांनी क्लायमेटशी संबंधित उपक्रमांवर केलेल्या खर्चासह भारत सरकारने आपल्या विविध उपक्रमांवर खर्च केलेली रक्कम आर्थिक वर्ष २०१८ मध्ये आर्थिक वर्ष २०१७ च्या तुलनेत दुपटीने वाढली असून अर्थसंकल्पीय तरतूद ३६ टक्क्यांनी वाढली आहे.
आर्थिक वर्ष १६ आणि आर्थिक वर्ष १७ या दोन्ही वर्षांमध्ये नोंदवण्यात आलेल्या एकूण हरित गुंतवणुकीत आंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक अर्थपुरवठ्याचा वाटा १० टक्के (१२ हजार कोटी रुपये) इतका कायम असल्याचेही अहवालातून दिसून आले आहे.
२०१६-१७ या आर्थिक वर्षात प्रोजेक्ट अथवा कॉर्पोरेट फायनान्सच्या माध्यमातून कर्ज हे सरासरी ७० हजार कोटी रुपयांच्या हरित गुंतवणुकीसाठीचे सर्वात मोठे आर्थिक साधन होते. हे प्रमाण एकूण नोंदित हरित अर्थपुरवठ्याच्या ५४ टक्के इतके होते.
श्रीमती आचार्य म्हणाल्या, “हरित भविष्याच्या दिशेने सुरू असलेल्या आर्थिक व वित्तीय प्रगतीचे अभूतपूर्व असले मानक असल्यामुळे हा अहवाल क्रांतिकारी आहे. भारतीय अर्थव्यवस्थेत किती हरित अर्थपुरवठा आला, याची आजवर फारच अल्प माहिती उपलब्ध होती. माहितीची ही दरी भरून काढण्यासाठी हा अभ्यास मदत करेल, असा आम्हाला विश्वास आहे,.”
सीपीआयकडून हरित गुंतवणुकीचा मागोवा प्राथमिक व्यवहाराच्या पातळीवर घेतला जात असल्यामुळे तो व्यापक असून संयुक्त राष्ट्रे, आयपीसीसी, जी७ देश आणि इंडोनेशिया, ब्राझिल आणि दक्षिण आफ्रिका आदी विविध देशांकडून त्याचा वापर केला जातो. भारतासाठी प्रथमच हा अभ्यास करण्यात आला असून भारताच्या पुढील टप्प्यातील शाश्वत विकासासाठी काम करत असलेल्या धोरणकर्त्यांना महत्त्वाची माहिती पुरवण्याचे काम हा अहवाल करतो.
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